http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/issue/feedजम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)2024-11-19T07:38:17+00:00Prof. Kaushal Panwarejournalsanskrit@ignou.ac.inOpen Journal Systems<p><span style="font-weight: 400;"><strong>e-journal, जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331) is covered:</strong> Darshan, Ved, Vyakaran, Bhasha Vigyan, Sahitya, Sanskrit mein Vigyan, Ayurved, Yog, Ancient Indian Psychology, employment opportunities in Sanskrit Language, and all the aspects of Indian Knowledge System. The special issues will also be placed. The paper will be invited in three languages – Sanskrit, Hindi and English.</span></p>http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1895“Ayurvedic principles and natural ingredients: pioneering new frontiers in health and personal care-integrating Ayurvedic principles and natural ingredients for enhanced health and wellness”2024-09-13T17:16:52+00:00Dr. Saurabh Bhandaresaurabh_bhandare@yahoo.com<p>This study explores the development and optimisation of herbal tablets and shampoos using <em>Kalanchoe pinnata</em> extract and various natural ingredients, grounded in Ayurvedic principles. <em>Kalanchoe pinnata</em>, a traditional herb known for its potential anticancer and urinary stone treatment properties, is formulated into tablets with varying concentrations and excipients. The tablets are evaluated for key pharmaceutical parameters such as: hardness, friability, disintegration time, and dissolution profile, with advanced analytical techniques employed to assess bioactive components. Also, the study includes the formulation of a herbal shampoo incorporating natural ingredients like soapnut, shikakai, and essential oils, designed to improve hair health while avoiding harsh chemicals. Both products aim to enhance patient compliance and treatment efficacy by providing effective, natural alternatives to conventional options. Palash <em>(Butea monosperma)</em> tea, enhanced with saffron, represents a powerful blend that integrates the beneficial properties of both ingredients These researches highlights the integration of traditional Ayurvedic knowledge with modern pharmaceutical and cosmetic practices to offer holistic health solutions.</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1886पूर्वोत्तरभारतेउपनिबद्धाः तान्त्रिकग्रन्थाः2024-09-07T14:59:59+00:00Anil Kumar Acharyaacharyaanilkumar1@gmail.com<p>सर्वैः ज्ञायते यत् पूर्वोत्तरभारतं भारतस्य पूर्वतमप्रदेशान् निर्दिशति। तस्मिन्आहत्य अष्टौ भारतीयराज्यानि सन्ति। तानि यथा – आसामः, अरुणाचलप्रदेशः, मेघालयः, मणिपुरः, मिजोरामः, त्रिपुरा, नागालैण्ड्, सिक्किम्चेति। सिक्किम् राज्यंविहाय शेषं संयुक्ततया "सप्तभगिनी" इति नाम्ना प्रसिद्धम्। सिक्किम्-राज्येन साकम् एतानि अष्टराज्यानिआहत्य“अष्टलक्ष्मी” इत्यपि अभिधीयन्ते। एतेषु सर्वत्र हिन्दुधर्मस्य अस्तित्वं सत्यपि, केवलंआसामे, त्रिपुरायां, सिक्किमे, मणिपुरे, अरुणाचलप्रदेशे चहिन्दुजनानां संख्या अधिका वर्तते।परन्तु हिन्दुधर्मानुयायीनाम् अधिकतमा संख्यापूर्वोत्तरराज्येषु आसामे, त्रिपुरायां, सिक्किम्-राज्ये एव वर्तते। एकादशाधिकद्विसहस्रतमे वर्षे कृता जनगणनानुसारं सिक्किम-राज्ये हिन्दुनां संख्याधिक्यं प्रमाणितमपितत्र जनजीवने बौद्धधर्मस्य संस्कृतेश्च अधिकप्रभावः इति सामान्यधारणा। अतो हि यदा अत्र पूर्वेत्तरभारते तन्त्राणां तान्त्रिकग्रन्थानां वा विषये आलोच्यते, तदा पूर्वोत्तरभारतमिति पदेन केवलम् आसामरज्यं, त्रिपुराराज्यम्एव स्वीकृतं लेखकेन।</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1947वैदिक साहित्य में सामाजिक सौहार्द2024-10-09T18:24:42+00:00Dr. Kamlesh Ranikamalbattra@gmail.com<p>वेद विश्वभाषा के सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। इस तथ्य को प्राच्य और पाश्चात्य विद्वान् लगभग एकमत होकर स्वीकार करते हैं। वैदिक वाङ्मय में वैश्विक एकता और अखण्डता की बातें पदे-पदे कहीं गयी हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद इन पाँचों वर्णों के हितचिन्तक राष्ट्रनायक को ऋग्वेद में पाञ्चजन्य कहा गया है-</p> <p> </p> <p><strong>स जामिभिर्यत् समजातिमीहेऽजामिर्भिवा पुरुहूत एवः ।</strong></p> <p><strong>अया तोकस्य तनयस्य जेथे मरूत्वान् नो भवत्विन्द्र कती ॥</strong></p> <p><strong>स वज्रभूद् दस्युहा भीम उग्रः सहस्रचेताः शतनीथ ऋभ्वा ।</strong></p> <p><strong>चम्रीषो न शवसा पाञ्चजन्यो मरुत्वान नो भवत्विन्द्र ऊती ॥</strong></p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1921बौद्ध दर्शन की ज्ञानमीमांसा : एक अनुशीलन2024-09-26T14:56:30+00:00Sumit Gangwarsumitgangwarhnbgu@gmail.com<p><em>यह सर्वविदित है कि भगवान बुद्ध ने न भाव </em><em>(Being) </em><em>का, न आभाव </em><em>(Nonbeing) </em><em>का, बल्कि परिवर्तन </em><em>(Becoming) </em><em>का उपदेश दिया।बुद्ध का दर्शन मध्यम मार्ग का दर्शन है।बुद्ध ने विषय भोग और तपस्या दोनों कोटियों का खंडन किया और सम्यक् दृष्टि, सम्यक् वचन और सम्यक् आचार का मध्यम मार्ग अपनाया।बौद्ध दर्शन लोकोपकार के लिए निर्वाण की प्राप्ति हेतु चार आर्य सत्यों एवं त्रिरत्न अर्थात् शील (सात्विक कर्म), समाधि (चित्त की नैसर्गिक एकाग्रता) तथा प्रज्ञा </em><em>(</em><em>ज्ञान) से युक्त अष्टांगिक मार्ग के पालन का उपदेश देता है।समय परिवर्तन के साथ-साथ बौद्ध धर्म विभिन्न शाखाओं में विभक्त हो गया। इसमें से चार शाखाओं यथा </em><em>(1) </em><em>माध्यमिक शून्यवाद</em><em>, (2) </em><em>योगाचार विज्ञानवाद</em><em>, (3) </em><em>सौत्रान्तिक बाह्यानुमेयवादतथा (4) वैभाषिक बाह्य प्रत्यक्षवाद प्रमुख हैं। बौद्ध धर्म की इन चारों शाखाओं के दर्शन में ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है।प्रस्तुत शोध आलेख में बौद्ध धर्म तथा दर्शन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए इसकी चारों प्रमुख शाखाओं की ज्ञानमीमांसा में ज्ञान के वास्तविक अर्थ, ज्ञान की प्रकृति, ज्ञान के स्वरूप, ज्ञान के वर्गीकरण तथा ज्ञान की प्राप्ति के प्रमाणों पर विस्तृत चर्चा की गई है।</em></p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1957गणितीय ज्यामितीय विधि एवं अध्वयोग प्रत्यय : एक विश्लेषण (छन्द:सूत्र के विशेष सन्दर्भमें)2024-10-15T04:04:34+00:00Ravi Kumar Meenakarauliravi219@gmail.com<p>आचार्य यास्ककृत निर्वचनानुसार<a href="#_ftn1" name="_ftnref1">[1]</a>छन्द शब्द की व्युत्पत्ति ’<strong>छदिर्</strong><strong>-आवरणे</strong>’ धातु से स्वीकार की है, जिसका अर्थ है <strong>आच्छादित</strong><strong> करना।</strong> अतः छन्द वेदों को आच्छादित करते हैं, इसलिए छन्द कहलाते हैं। छन्दःसूत्र में प्रयुक्त जिन नियम या विधियों के आधार पर छन्दों के भेद आदि के विषय में जाना जाता है, उसे प्रत्यय कहते हैं<a href="#_ftn2" name="_ftnref2">[2]</a>। कुल 6 प्रत्यय क्रमानुसाaiर स्वीकार किये गये हैं- प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, एकद्व्यादि-लगक्रिया, सङ्ख्यान तथा अध्वयोग<a href="#_ftn3" name="_ftnref3">[3]</a> । इस शोधपत्र में अध्वयोग प्रत्यय को समझाते हुए गणितीय दृष्टि से उसका विश्लेषण किया गया है।ज्यामिति रेखागणित या ज्यामिति गणित की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। ज्यामिति के अन्तर्गत बिन्दुओं, रेखाओं, तलों और ठोस चीजों के गुण तथा इसके स्वभाव और मापन के विषय में अध्ययन किया जाता है। सबसे पहले जब भूमि का नाम लिया गया तब ज्यामिति की शुरुआत हुई इसलिए तब से इसे भूमिति संज्ञा से भी स्वीकार किया गया है। प्रारम्भिक समय में यह अध्ययन रेखाओं से घिरे क्षेत्रों के गुणों तक ही सीमित था इसीलिए आचार्यों द्वारा इसका एक नाम रेखागणित भी स्वीकार किया जाताहै।अध्वयोग प्रत्यय सम्बन्धी आचार्य पिङ्गल ने कुछ सूत्रों की सहायता से इस विधि को स्पष्ट किया है। सूत्र के अनुसार संख्या 1 से n वर्ण वाले सभी समछन्दों का योग (2<sup>n+1</sup>) स्वीकार किया गया है।</p> <p> </p> <p><a href="#_ftnref1" name="_ftn1"></a></p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1997A Comparative Study Analysis Kanada's Laws Of Motion and Newton's Laws of Motion2024-11-18T05:27:17+00:00Anjalianjalidahriya429@gmail.com<p>This paper presents a comparative analysis of Kanada's Laws of Motion, originating from ancient Indian philosophical traditions, and Newton's Laws of Motion, formulated in the 17th century Europe. Kanada, a prominent figure in Indian philosophy, articulated principles of motion and inertia that predate Newton's laws by millennia. This study explores the historical contexts, philosophical foundations, and practical implications of both sets of laws. Kanada's approach emphasizes a philosophical and qualitative understanding of motion, while Newton's laws provide a quantitative framework crucial to modern physics and engineering. Through a comparative lens, this research highlights similarities, differences, and the cultural influences shaping these formulations, thereby contributing to a broader understanding of motion across diverse intellectual traditions.This abstract summarizes the focus, scope, and key points of the paper, highlighting the comparative analysis of Kanada's and Newton's laws of motion and their respective impacts on scientific thought and application.</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1937“नेपाली (गोरखा) समाज का लोक संस्कृति कापर्व - दसैँ (विजयादशमी)”2024-10-06T03:32:37+00:00Dr. Chhabilal Neupanechhabilalneupane@hotmail.com<p>भारतवर्ष में गोरखा शब्द से नेपाली भाषी समुदाय के लोगों को जाना जाता है। नेपाली भाषा नेपाल, भारत (सिक्किम, आसाम, दार्जिलिंग, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश), भूटान, तिब्बत, म्यांमार में रह रहे गोरखा समुदाय के लोगों की मातृभाषा है।नेपाली भाषी लोगों को यह नाम८वीं शताब्दी के हिन्दू योद्धा संत श्रीगुरु गोरखनाथ सेप्राप्त हुआ था। भारतीय संस्कृति से अनुप्राणित सनातन धर्म की मूल-परम्पराओं को जीवित रखने में भारतवर्ष के विभिन्न देशों की अहम भूमिका है। यही कारण है कि भारतवर्ष के भारत, नेपाल, भूटान आदि विभिन्न देशराजनैतिक, भौगोलिक दृष्टिकोण से अलग-अलग होने पर भी सांस्कृतिक, धार्मिक परम्पराओं से एक हैं। भारतवर्ष के देश भौगोलिक रूपी शरीर से अलग अलग होने पर भी इन सभी शरीर में विद्यमान आत्मा एक है। अतः राजनैतिक रूप से सुदृढ करने के लिए परस्पर में मित्रराष्ट्र का व्यवहार किया जाता है। भारतवर्ष के विषय में यह श्लोक उद्धृत किया जाता है –</p> <p><strong>उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।</strong></p> <p><strong>वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः॥</strong></p> <p>अर्थात् समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं।</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1933भारतीय परंपरा में अट्ठारह विद्यास्थान2024-10-02T14:14:45+00:00Dr. Subodhkant Mishrasubodhkantats@gmail.com<p><strong>‘भारतस्य द्वे प्रतिष्ठे,संस्कृतसंस्कृतिस्तथा’</strong> इस कथन के ही आलोक में अथाह ज्ञान राशि को स्वयं में समाहित किये हुए, अनंत काल से अनवरत, संस्कृत ने भारतीय संस्कृति के प्राण कहे जाने वाले शास्त्रों ग्रंथों को संजोने का काम किया। ज्ञान रूपी प्रकाश में निरत रहने वाले भारत की इन शास्त्रीय विद्याओं को कुल 18 भागों में वर्गीकृत किया गया। 18 के अन्यान्य उदाहारण भी हमारे समक्ष उपस्थित हैं । इनमें प्रमुख रूपेण 18 पुराण और 18 उपपुराण 18 स्मृतियाँ हैं। भगवद्गीता में 18 अध्याय हैं, और महाभारत पाठ में 18 खंड (पर्वण) हैं। महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। युद्ध के बाद, पांडवों ने 36 वर्षों तक शासन किया (18 गुणा 2)। हम 18 के कुछ अन्य समूह को भी बाँट सकते हैं: जैसे 18 विवाद-पद (कानून की अदालत में मुकदमा), 18 धान्य (अनाज के प्रकार ), या 18 उपकार (देवताओं को पूजा के रूप में दी जाने वाली सेवाएँ)।</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1948Learning Leadership from Bhagavad Gita in Present Scenario2024-10-28T17:02:55+00:00SANDEEP RAJAKyogasandeeprajak@gmail.comArpit Dubeyarpitkumarprince@gmail.comPreethi D’souzapreethimauni@gmail.com<p>In today's era, the constantly changing world can be seen, a leader can take his organization to the level of progress with his thinking, wisdom and intelligence and that is certainly due to the right decisions. On the other hand, if we take these decisions without thinking and intelligence, then ourselves and organization do not move towards progress and start moving towards misfortune. Leadership is a very important skill, a good leader not only removes troubles but also motivates us to lead on the path of progress with innovate, problem solving, helping, dynamic, exciting, and inspiring way. Present Scenario is reshaping almost every individual in the world. The world we live in is becoming one in many ways. Leadership is about mapping out where you need to go to "win" as a team or an organization. The Bhagavad Gita is the one which can teach us the true way of Leadership. The Gita not only tells us about leadership but also gives us information about what qualities should be in a leader in today's era. The Gita is worthy of acceptance, only that, one’s duty is to read Gita properly and wear it in the inner sense of meaning and emotion.</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1788Concept Virāj: A Critical Study2024-07-21T07:17:30+00:00Radhika Deshpanderadhika.deshpande@dcpune.ac.in<p> ‘annam vai virāṭ’ is a well-known Śruti that identifies meter Virāj as anna. i.e. food in general as well as the divine food including havis, soma etc. The Monier Williams dictionary also mentions that Virāj is mystically regarded as ‘food’, and invocations are directed to be made in this meter when food is the special object of prayer. Surprisingly, there is no uniform formula that describes the external form of the meter. There are multiple definitions about the number of letters in each pāda, exact number of pāda and the nature of the meter. But Virāj is said to bring us food irrespective of its form. Therefore it calls for researcher’s interests into an inquiry. This word Virāj occurring in feminine gender has multidimensional nuances and its connection with anna, whether clear or obscure, has been asserted in almost all of its forms and presences. This research paper, therefore, is based on the following hypotheses: Popularized as one of the important meters among seven Vedic meters, Virāj was later perceived as playing substantial role in making the universe sustain through repeating cycle of recreation and nurturing. Although Virāj lost its position among important meters, it could retain its fundamental sanctity throughout the process of self-evolution. Additionally, ‘Virāj’ can be regarded as the pioneer illustration of ‘semantic density’ of food-related terminology in the history of Indian Philosophy through which the relation between gross and subtle, individual and universe, microcosm (vyaṣṭi) and macrocosm (samaṣṭi) was manifested and realised.</p>2024-11-19T00:00:00+00:00Copyright (c) 2024 जम्बूद्वीप - the e-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331)