अग्नि: प्रथमो देवता

(ऋग्वेद 1.31 की विविध भाष्यपरकव्याख्या)

Authors

  • Monika Verma DrSRRAU Jodhpur Rajasthan

Keywords:

वेद, सायणकृत भाष्य, दयानन्दकृत भाष्य

Abstract

            वेद वैश्विकचेतना के सर्वोच्चस्तर का चरम निदर्षन है। रजोगुण और तमोगुण से विनिर्मक्त ऋषियों ने अपने दिव्य अन्तःकरण में सात्विकधियामात्र से अनुभूत ज्ञान को ऋचाओं के रूप में निबद्ध किया। ये ऋचाएं  अग्नि, इन्द्र, अश्विनी कुमार,वरुण, विष्णु, रुद्र ब्रह्मणस्पति,उषा, सविता,सूर्य,सोम,मित्र,भग,अर्यमा,ऋभु,सोम आदि देवताओं की स्तुति का परमसाधन है। इन स्तुतियों के प्रतिदान में ऋषियों द्वारा गौ, अश्व, वाज, शत्रुविजय एवं प्रभूत सन्तति की याचना करते हुए देवताओं के स्वरूप एवं कर्मों का अत्यन्त अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है और यही मन्त्रों की संक्षिप्तविषयवस्तु है।

            इस सम्बन्ध में सहज ही जिज्ञासा होती है कि वे ऋषि जो प्रकृतिस्थ कहे गये हैं तथा जिनमें लेशमात्र भी रज और तम नहीं है ,जिनके वचन मुक्तकण्ठ से अपौरुषेय एवं ईष्वावाक् वेद के रूप में आदृत हैं क्या ये वही वेद है जिसमें सामान्य मनुष्यों की ईष्र्या, लोभ, लालच,मोह मत्सरता जैसे भाव कविता में व्यक्त हुए हैं। क्या ये ऋषि हमारे जैसे ही तुच्छ मनोवृत्ति वाले मनुष्य थे। ऐसी ही जिज्ञासा समय-समय पर उत्थित हुई है। इसके प्रमाण के रूप में यास्ककृत निरुक्त में प्राप्त होता है जहां यास्क वैदिक ऋचाओं के त्रिविध अर्थ की ओर संकेत करतें है - तास्त्रिविधा ऋचः। परोक्षकृताः। प्रत्यक्षकृताः। आध्यात्मिक्यष्च। अर्थात् ऋचाएं तीन प्रकार की होती है-परोक्ष, प्रत्यक्ष एवं आध्यात्मिक। यदि इस विचार को आधार बनाकर अध्ययन किया जाये तो वेदों में निगूढ तत्त्व का प्रकाशन संभव है। इसी आधार पर मैंने अग्नि सूक्त 1.31 के विश्लेषण का प्रयास किया है।

Published

2023-10-26

How to Cite

Monika Verma. (2023). अग्नि: प्रथमो देवता: (ऋग्वेद 1.31 की विविध भाष्यपरकव्याख्या). जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 2(2). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1189