आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी का काव्य शास्त्रीय अवदान

Authors

  • Dr. Devesh Kumar Mishra

Abstract

संस्‍कृत भाषा का काव्‍यशास्‍त्र एक विशालतम काव्‍यशास्‍त्र है। वैदिक एवं लौकिक साहित्‍य के सन्धिकाल की वेला से ही संस्‍कृत काव्‍य जगत का परम्‍परा के रूप में प्रारम्‍भ है। वेदों में कविता के बीज और इसके नियमन करने वाले शास्‍त्रीय तत्‍व पाये जाते हैं।  किन्‍तु शास्‍त्र की परम्‍परा के रूप में काव्‍य के शरीर के निर्माण और उसके आत्‍मतत्‍व का विचार आचार्य भरत से आरम्‍भ है। पण्डितराज जगन्‍नाथ के समय तक काव्‍यशास्‍त्र की परम्‍परा सम्‍प्रदाय के रूप में प्राप्‍त हुई। छ: सम्‍प्रदायों में विस्‍तृत संस्‍कृत काव्‍यशास्‍त्र के सिद्धान्‍त पक्ष पर विचार करते हुए 21वीं शताब्‍दी में आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी ने नवीन प्रस्‍थापना करने का प्रयास किया। जिसमें अलंकार को काव्‍य के लक्षण में आत्‍मतत्‍व के रूप में अलंब्रह्मवाद द्वारा स्‍थापित किया। काव्‍य के कारणों पर विचार करते हुए केवल प्रतिभा को ही काव्‍य का कारण माना। काव्‍यप्रयोजनों के लिए विचार करते समय आचार्य द्विवेदी ने तीन प्रकार के  अभिनव प्रयोजनों का तार्किक रूप से वर्णन किया। इस प्रकार काव्‍य के शरीर और आत्‍मा के विचार की परम्‍परा में आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी का महत्‍वपूर्ण योगदान प्रतीत होता है।

Published

2023-10-26

How to Cite

Dr. Devesh Kumar Mishra. (2023). आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी का काव्य शास्त्रीय अवदान. जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 2(2). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1346