पूर्वमीमांसा सम्मत व्याख्याशास्त्र की अपेक्षा-उपेक्षा
Abstract
व्यवहार में ‘धर्म‘ शब्द कर्म का पर्याय है। कर्म दो प्रकार के हैं- सामान्य और विशेष। सामान्य धर्म वह है जो मनुष्य मात्र के लिये हो। विशेष धर्म का पालन पात्रता तथा अधिकार एवं योग्यता को लेकर चलता है जैसे सुसंस्कृत एवं संयमित व्यक्ति ही यज्ञ सम्बन्धी कर्मानुष्ठान का अधिकारी है। इन धर्मों का मूल स्रोत वेद में पाया जाता है। इनका क्रमबद्ध विवेचन स्रौतसूत्र में पाया जाता है। जहां-जहां इनसे सम्बन्धित वाक्यार्थ मंे सन्देह होता है उसका निर्णय मीमांसाशास्त्र द्वारा किया जाता है। वाक्यार्थ निर्णय मंे मीमांसाशास्त्र द्वारा किया जाता है। वाक्यार्थ निर्णय में मीमांसाशास्त्र का उपयोग धर्म विचार को प्रमाणिक तथा जनसुलभ बनाता है।