श्रीमद्भगवद्गीता में मृत्यु-दर्शन एवं आत्मा का रहस्य
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श्रीमद्भगवद्गीता हमें मृत्यु को सहर्ष अंगीकार कैसे करें, इसकी शिक्षा भी देती है। अन्य अनेक शिक्षाओं के अलावा मृत्यु का आनंद से स्वागत करना, उससे किंचित मात्र भी भयभीत ना होना, ये सीखाती है। मृत्यु, जो की अंतीम सत्य है, उसका कैसे वरण करें, ये हमें श्रीमद्भगवद्गीता सीखती है।
श्रीमद्भगवद्गीता में ऐसे अनेक श्लोक है, जिसमें मृत्यु को जीवन का एक अपरीहार्य अंग एवं एक परिवर्तनकारी प्रक्रिया कहा गया है। यह भौतिक शरीर पँचमहाभूत में समा जाता है और आत्मा किसी और शरीर में समा जाती है। यह एक अविरल और अविचल प्रक्रिया है। ऐसा माना जाता है कि जिसनें गीता को भलीभाँति समझ लिया, वह जन्म-मृत्यु के चक्र से विमुक्त हो जाता है।