बहुलता प्रधान समाज – भारतीय दृष्टि

Authors

  • Dr. Ashutosh Dayal Mathur

Abstract

मनुष्य के ही स्वाभाविक मतवैभिन्न्य के कारण व्यक्तियों व समुदायों में आचार – विचार की भिन्नता दिखाई देती है। कुछ प्रवृत्तियों की समानता के कारण हम भले ही व्यक्तियों को समुदायों में विभक्त कर लेते हैं, किन्तु बहुविधता हर समाज का अनिवार्य तत्त्व है। भेद शंका व भय को तथा संघर्ष को जन्म देता है। अतः हर सभ्य समाज अपने विरोधाभासों का समाधान करने का प्रयास करता है। भारतीय समाज में विविधता वैदिक काल से ही दिखाई दे रही है॥ अतः भारत ने सामुदायिक सद्भाव स्थापित करने के लिये विविधता को ही अपनी शक्ति बना लिया। हम यहाँ परम नैयायिक जयन्त भट्ट के ग्रन्थ आगमडम्बर के आधार पर धार्मिक सम्प्रदायों के विरोधों के समाधान के आधारभूत सिद्धान्तों का विश्लेषण करेंगे।

Author Biography

Dr. Ashutosh Dayal Mathur

डा० आशुतोष दयाल माथुर

एसोसियेट प्रोफ़ैसर, सेंट स्टीफ़ंस कालिज, दिल्ली

Published

2022-11-25

How to Cite

Dr. Ashutosh Dayal Mathur. (2022). बहुलता प्रधान समाज – भारतीय दृष्टि. जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 1(1). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/820