यज्ञ विज्ञान
Abstract
महाभारत काल के पश्चाचात मत-मतान्तरों के द्वारा धर्म अध्यात्म के साथ कर्मकाण्ड0 सम्बन्धी भ्राँतियाँ भी बहुत फैली! वाम मार्गी लोग यज्ञ के लिए निरपराध प्राणियों को मारने लगे ! कालान्तर में करुणा प्रधान हृदय वाले ''महात्मा बुद्ध'' , ''जैन तीर्थकर भगवान महावीर'' आदि ने उन "हिंसक यज्ञों" का विरोध किया ! हिंसक यज्ञों के होने से अनेक व्यक्तियों के हृदय में ''अग्नि होत्र'' के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न हो गई जिसके परिणाम स्वरुप यह सर्व-कल्याणकारी वैदिक परम्परा प्राय: लुप्ती सी हो गई ! "देवी देवताओं" एवं "यज्ञों" के नाम पर हो रहा पशुवध, वेद उद्धारक "महर्षि दयानंदजी" की कृपा से वैदिक विधानानुसार "हिंसा रहित" यज्ञ पुन: होने लगे !
इस युग के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान् महर्षि दयानन्द के अनुसार ''अग्नि होत्र'' से लेकर "अश्व-मेध" पर्यन्तव जो यज्ञ हैं, उसमें चार प्रकार के द्रव्यों का होम करना होता है ! 1. सुगन्ध गुण युक्त - जो 'कस्तुरी', केशर' सुगन्धित गुलाब के फुल आदि, 2. मिष्टगुण युक्त जो कि गुड़ या शक्कर आदि, 3. पुष्टि-कारक जो घृत और जौ, तिल आदि, 4. रोगनाशक जो कि सोमलता, औषधि आदि ! इन चारों का परस्पर शोधन, संस्कार और यथायोग्य मिलाकर 'अग्नि' में ''वेद ऋचाओं'' द्वारा युक्तिकपूर्वक जो होम किया जाता है। वह वायु और वृष्टिजल की शुद्धि करने वाला होता है !
वे लिखते हैं कि जो (होम) यज्ञ करने के द्रव्य अग्नि में डाले जाते हैं उनसे ''धुआँ'' और ''भाप'' उत्पन्न होते है, क्योंकि अग्नि का यही स्वभाव है कि पदार्थो में प्रवेश करके उनको भिन्न -भिन्न कर देता है फिर वे हल्के हो के वायु के साथ ऊपर आकाश में चढ़ जाते हैं ! उनमें जितना जल का अंश है वह भाप कहलाता है और जो शुष्क है वह पृथ्वी का भाग (कार्बन) है ! इन दोनों के योग का नाम ''धूम'' है ! जब वे परमाणु मेघ मंडल में वायु के आधार से रहते हैं फिर वे परस्पर मिलकर बादल होकर उनसे ''वृष्टि'', वृष्टि से ''औषधि'', औषधियों से ''अन्न'', अन्न से ''धातु'', और धातु से ''शरीर'' और शरीर से ''कर्म'' बनता है !
सुगंध युक्त, ''घी'' आदि पदार्थों को अन्य 'द्रव्यों में मिलाकर अग्नि में डालने से उनका नाश नहीं होता है वस्तुतः किसी भी पदार्थ का नाश नहीं होता केवल वियोग मात्र होता है और यज्ञ में ''वेद मंत्र'' द्वारा दी हुई आहूति में उस पदार्थ की शक्ति 100 गुना बढ़ जाती है !
वृष्टि > औषधि > अन्न >धातु> शरीर> कर्म
आकाशीय बिजली में अग्नि का गुण होता है ! हार्प वायुमंडल / बदलो के इस चार्ज को बदल देता है ! विकरण और अग्नि के गुण अलग होते है ! इस देश में कही कही बरसात का पानी बिना बिजली के भी गिर रहा है जिसके जल के गुण बदल जाते है ! शुद्ध जल और वायु के द्वारा अन्नादि औषधि भी अत्यंत शुद्ध होती है!
अगर वायमण्डल में अग्नि नही होगी फिर बरसात का पानी फलों / सब्जियों और वनस्पति की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है ! वातावरण की अग्नि को ''वैदिक यज्ञ'' से भी उत्पन्न किया जा सकता है बस यज्ञ की विधि सही हो !
''यज्ञ'' से पर्यावरण शुद्ध होता है, वर्षा होती है और हमारा अंत:करण भी पवित्र होता है ! यह विज्ञान द्वारा सिद्ध है इस कारण से यज्ञ केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं किन्तु विश्व के प्रत्येक मानव के लिए , चाहे वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, यहुदी और पारसी आदि हो , सबके लिए अनिवार्य है !