वैदिक साहित्य में सामाजिक सौहार्द

Authors

  • Dr. Kamlesh Rani Kamala Nehru College, University of Delhi

Abstract

वेद विश्वभाषा के सर्वप्राचीन ग्रन्थ है। इस तथ्य को प्राच्य और पाश्चात्य विद्वान् लगभग एकमत होकर स्वीकार करते हैं। वैदिक वाङ्मय में वैश्विक एकता और अखण्डता की बातें पदे-पदे कहीं गयी हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद इन पाँचों वर्णों के हितचिन्तक राष्ट्रनायक को ऋग्वेद में पाञ्चजन्य कहा गया है-

 

स जामिभिर्यत् समजातिमीहेऽजामिर्भिवा पुरुहूत एवः ।

अया तोकस्य तनयस्य जेथे मरूत्वान् नो भवत्विन्द्र कती ॥

स वज्रभूद् दस्युहा भीम उग्रः सहस्रचेताः शतनीथ ऋभ्वा ।

चम्रीषो न शवसा पाञ्चजन्यो मरुत्वान नो भवत्विन्द्र ऊती ॥

Published

2024-11-19

How to Cite

Dr. Kamlesh Rani. (2024). वैदिक साहित्य में सामाजिक सौहार्द. जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 3(2). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1947