बौद्ध दर्शन की ज्ञानमीमांसा : एक अनुशीलन

Authors

  • Sumit Gangwar Department of Education, University of Lucknow, Lucknow

Abstract

यह सर्वविदित है कि भगवान बुद्ध ने न भाव (Being) का, न आभाव (Nonbeing) का, बल्कि परिवर्तन (Becoming) का उपदेश दिया।बुद्ध का दर्शन मध्यम मार्ग का दर्शन है।बुद्ध ने विषय भोग और तपस्या दोनों कोटियों का खंडन किया और सम्यक् दृष्टि, सम्यक् वचन और सम्यक् आचार का मध्यम मार्ग अपनाया।बौद्ध दर्शन लोकोपकार के लिए निर्वाण की प्राप्ति हेतु चार आर्य सत्यों एवं त्रिरत्न अर्थात् शील (सात्विक कर्म), समाधि (चित्त की नैसर्गिक एकाग्रता) तथा प्रज्ञा (ज्ञान) से युक्त अष्टांगिक मार्ग के पालन का उपदेश देता है।समय परिवर्तन के साथ-साथ बौद्ध धर्म विभिन्न शाखाओं में विभक्त हो गया। इसमें से चार शाखाओं यथा (1) माध्यमिक शून्यवाद, (2) योगाचार विज्ञानवाद, (3) सौत्रान्तिक बाह्यानुमेयवादतथा (4) वैभाषिक बाह्य प्रत्यक्षवाद प्रमुख हैं। बौद्ध धर्म की इन चारों शाखाओं के दर्शन में ज्ञान को अत्यधिक महत्व दिया गया है।प्रस्तुत शोध आलेख में बौद्ध धर्म तथा दर्शन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए इसकी चारों प्रमुख शाखाओं की ज्ञानमीमांसा में ज्ञान के वास्तविक अर्थ, ज्ञान की प्रकृति, ज्ञान के स्वरूप, ज्ञान के वर्गीकरण तथा ज्ञान की प्राप्ति के प्रमाणों पर विस्तृत चर्चा की गई है।

Published

2024-11-19

How to Cite

Sumit Gangwar. (2024). बौद्ध दर्शन की ज्ञानमीमांसा : एक अनुशीलन. जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 3(2). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1921