वाजसनेयि संहिता में उभयपदप्रधान एवं मत्वर्थीय समास
Abstract
वाजसनेयि-संहिता ही शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध है, जिसके प्रवर्तक ऋषि याज्ञवल्क्य माने जाते हैं। शुक्ल यजुर्वेद संहिता में केवल मन्त्रों का ही संग्रह है, उनका विनियोग बताने वाले ब्राह्मण भाग का मिश्रण इस संहिता में नहीं है, अतः शुद्ध होने के कारण इसे ‘शुक्ल’ संज्ञा प्राप्त है। यज्ञ एक शुभ कर्म है और शुभ वस्तुओं के लिए पवित्र वर्ण श्वेत का प्रयोग होता है, इसलिए भी इस संहिता का नाम शुक्ल यजुर्वेद है। इस वाजसनेयि-संहिता में 40 अध्याय और 1975 मन्त्र हैं।
समास शब्द सम् पूर्वक ‘असु क्षेपणे’ धातु से भाव में घ´~ प्रत्यय लगकर बनता है, जिसका अर्थ है- संक्षेप। समसनम् इति समासः अर्थात् एक साथ या पास-पास रखना। प्रत्येक संक्षेप को समास नहीं कहते, अपितु जब दो या दो से अधिक पद मिलकर एक हो जाते हैं, तो उसे समास कहते हैं। वेद में समास के 6 भेद माने गए हैं, जिनमें से उभयपदप्रधान और मत्वर्थीय समास का वर्णन इस शोधपत्र में किया गया है।