काव्यपाक
सार
काव्यरचना के निरन्तर अभ्यास से सुकवि का काव्य परिपक्व हो जाता है। यही काव्यपाक है। विकास के प्रारम्भिक युग में अवश्य ही यह काव्यशास्त्र का एक वर्णनीय विषय रहा होगा। उस युग के सम्प्रति अनुपलब्ध ग्रन्थों में इसका विशद् वर्णन भी किया जाता रहा होगा, यह तथ्य काव्यमीमांसा के अध्ययन से प्रमाणित होता है, जहाँ अनेक आचार्यो के दृष्टिकोण से काव्यपाक से सम्बन्धित अनेक मत उद्धृत किये गये हैं। इस सन्दर्भ में कुछ आचार्य नामनिर्देशपूर्वक तथा कुछ विना नाम लिये उद्धृत हैं। राजशेखर ने अपनी पत्नी अवन्तिसुन्दी सहित अनेक आचार्यो की मान्यताओं को पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुत करते हुये इस विषय का विशद विवेचन किया है।