चम्पूकाव्यः परिभाषा एवं स्वरूप
सार
चम्पू -काव्य का बीज वैदिकयुग से ही मिलता है जो कृष्णयजुर्वेद, अथर्वेद, ब्राह्मण-ग्रन्थों तथा जातक ग्रन्थों में पाया जाता है।मिश्रशैली का सबसे प्राचीन जो चम्पूग्रंथ उपलब्ध होता है वह है त्रिविक्रमभट्टकृत 'नलचम्पू'।चम्पूकाव्य गद्य और पद्य का मिश्रण है।गद्य काव्य का अर्थगौरव और पद्य काव्य की अर्थगौरवोपबृंहित रागमयता दोनों के एकत्र मिल जाने पर एक विचित्र काव्यशैली 'चम्पू' का उदय हुआ । पद्य और गद्य दोनों का अपना-अपना अस्तित्व होता है परन्तु चम्पूकाव्य में पद्य व गद्य की युगपत् प्रवृत्ति एक विशिष्ट आनन्द को अभिव्यञ्जित करती है।एकमात्र गद्य से अथवा पद्य से उतना आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता है जितना कि उभयसम्मिश्रण से, इस प्रकार चम्पूकाव्य एक चमत्कार-प्रधान काव्य-शैली है।