ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति
सार
ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति कहाँ और कब हुई? - यह एक ऐसा विषय है, जो आज भी पुरातत्त्ववेत्ताओं, इतिहासकारों व विद्वद्समाज के मध्य पर्याप्त चर्चा का विषय रहा है। प्राच्य एवं प्रतीच्य दोनों ही विद्वानों ने अपनी-अपनी दृष्टियों से इसका निराकरण करने का प्रयास किया। औपनिवेशिक सत्ता व मानसिकता से प्रभावित प्रायः प्रतीच्य विद्वानों ने ब्राह्मी की उत्पत्ति के विषय में विदेशी उद्भव के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर उसे स्वीकार किया है। किन्तु कुछ ऐसे प्रतीच्य विद्वान् भी थे जिन्होंने नीरक्षीरविवेक से ब्राह्मी की उत्पत्ति के विषय में विचार किया है। साथ ही भारतीय पुरातत्त्ववेत्ताओं एवं प्राच्य आचार्यों ने भी इस विषय का सूक्ष्म व गहन रूप में चिन्तन, मनन, मन्थन एवं अवलोकन किया तथा वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि ब्राह्मी की उत्पत्ति के विषय में भारतीय या स्वदेशी उद्भव का सिद्धान्त ही सर्वथा समीचीन है। प्रस्तुत शोधलेख के माध्यम से ब्राह्मी के विषय में विदेशी एवं स्वदेशी उद्भव के सिद्धान्त का पर्याप्त आलोड़न, अन्वेषण एवं सूक्ष्म परीक्षण कर इस निष्कर्ष पर पहुँचा गया है कि ब्राह्मीविषयक स्वदेशी उद्भव के सिद्धान्त का प्रतिपादन करनेवाले आचार्यों का मत ही सर्वमान्य एवं सर्वस्वीकार्य है।