"साहित्य में अभिव्यक्त राष्ट्रीय चेतना का भाव"
सार
“भारतीयों के लिए राष्ट्र या देश कोई भूमि का टुकड़ा नहीं जिसका उपयोग वे अपने अधिवास मात्र के लिए करते हों अपितु राष्ट्र और उसकी चेतना का स्पंदन भारतीय जनमानस के रक्त में संचरण करता है। इस बात को हर युग में, हम भारतवासियों द्वारा अनुभव किया जाता है। राष्ट्र और उसका गौरवभान सदियों से भारत जन के हृदयों में था है और रहेगा। जब भी राष्ट्र पर कोई विपदा आती है तो यह भाव तीव्रता से उभरकर सामने आता है। भारतीय साहित्य ने इस राष्ट्र भाव को न केवल सँजोया है अपितु उसकी अभिवृद्धि में भी साहित्य का असाधारण योगदान है। संस्कृति-समाज-साहित्य तीनों अन्योनाश्रित हैं जो भारतीय जनजीवन का एक अभिन्न हिस्सा है।हर भारतीय इन तत्वों से अनुप्राणित होता है। साहित्य का यह अनन्यसाधारण अवदान भारतवर्ष की अमूल्य निधि है।’’