वेदों में विमान एवं अन्तरिक्षयात्रा
सार
संस्कृत समृद्ध एवं समर्थ भाषा है। इसमें भावए विचार-सम्प्रेषण, मानविकी, वैज्ञानिक अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकीय संकल्पनाओं को अभिव्यक्त करने की अपूर्व क्षमता है। जहां विज्ञान तथ्यों की खोज करता हैए वहीं भाषा उस तथ्य की अभिव्यक्ति का साधन होती है। आविष्कार एवं सृजन हृदय की भाषा में होते हैए क्योंकि वे बौद्धिकता से नहीं अपितु कल्पना से स्पंदित होते है। आज वेदों को विज्ञान के उत्स के रूप में देखा जा रहा है। शोधालेख में वैदिक ज्ञान-विज्ञान के अनुप्रयुक्त पक्ष को ही अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। मानवीय गरिमा तथा लोकमंगल भावना को जितनी अधिक कलात्मकता एवं अनुभूति की सूक्ष्मता से साहित्य में उतारा जा सकता है वही साहित्यकार की सफलता का मानदण्ड होता है।
वैदिक साहित्य में विज्ञान प्रौद्योगिकी की असीमित संभावनाएं मौजूद हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने मानव जीवन को सदैव अग्रगामी व्यवस्थित एवं विकसित दिशा दी है। बहुत जरूरी है कि विज्ञान को संस्कृत में सोचा एवं संस्कृत में लिखा जाए। इसके लिए वैज्ञानिकों, शोधार्थियों एवं साहित्यकारों, सभी को संस्कृत में विज्ञान लेखन को एक मिशन, एक आंदोलन के रूप में लेना होगा। संप्रति सूचना प्रौद्योगिकी, सूक्ष्म तंत्रज्ञान, जैव तंत्रज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे नवीनतम क्षेत्र हैं, जिनमें संस्कृत में प्रामाणिक वैज्ञानिक साहित्य की रचना की जा रही है। इस दिशा में युवा प्रतिभाशाली अध्येतायों को संस्कृत विज्ञान लेखन के प्रति आकृष्ट करने की आवश्यकता है। आज का युग जनसाधारण का भी युग है। शोधालेख का उद्देश्य वेदों में विद्यमान विमान प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष विज्ञान के अनुशीलन को उजागर करना एवं विद्यार्थियों में मौलिक सोच विकसित करना तथा नवाचार के वातावरण को प्रोत्साहित करने पर बल देना है।