गणितीय ज्यामितीय विधि एवं अध्वयोग प्रत्यय : एक विश्लेषण (छन्द:सूत्र के विशेष सन्दर्भमें)

Authors

  • Ravi Kumar Meena Sri Venkateswara College, University of Delhi

Abstract

आचार्य यास्ककृत निर्वचनानुसार[1]छन्द शब्द की व्युत्पत्ति ’छदिर्-आवरणे’ धातु से स्वीकार की है, जिसका अर्थ है आच्छादित करना। अतः छन्द वेदों को आच्छादित करते हैं, इसलिए छन्द कहलाते हैं। छन्दःसूत्र में प्रयुक्त जिन नियम या विधियों के आधार पर छन्दों के भेद आदि के विषय में जाना जाता है, उसे प्रत्यय कहते हैं[2]। कुल 6 प्रत्यय क्रमानुसाaiर स्वीकार किये गये हैं- प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, एकद्व्यादि-लगक्रिया, सङ्ख्यान तथा अध्वयोग[3] । इस शोधपत्र में अध्वयोग प्रत्यय को समझाते हुए गणितीय दृष्टि से उसका विश्लेषण किया गया है।ज्यामिति रेखागणित या ज्यामिति गणित की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। ज्यामिति के अन्तर्गत बिन्दुओं, रेखाओं, तलों और ठोस चीजों के गुण तथा इसके स्वभाव और मापन के विषय में अध्ययन किया जाता है। सबसे पहले जब भूमि का नाम लिया गया तब ज्यामिति की शुरुआत हुई इसलिए तब से इसे भूमिति संज्ञा से भी स्वीकार किया गया है। प्रारम्भिक समय में यह अध्ययन रेखाओं से घिरे क्षेत्रों के गुणों तक ही सीमित था इसीलिए आचार्यों द्वारा इसका एक नाम रेखागणित भी स्वीकार किया जाताहै।अध्वयोग प्रत्यय सम्बन्धी आचार्य पिङ्गल ने कुछ सूत्रों की सहायता से इस विधि को स्पष्ट किया है। सूत्र के अनुसार संख्या 1 से n वर्ण वाले सभी समछन्दों का योग (2n+1) स्वीकार किया गया है।

 

Published

2024-11-19

How to Cite

Ravi Kumar Meena. (2024). गणितीय ज्यामितीय विधि एवं अध्वयोग प्रत्यय : एक विश्लेषण (छन्द:सूत्र के विशेष सन्दर्भमें). जम्बूद्वीप - the E-Journal of Indic Studies (ISSN: 2583-6331), 3(2). Retrieved from http://journal.ignouonline.ac.in/index.php/jjis/article/view/1957