शुक्रनीति में वर्णित पर्यावरण संरक्षण
Abstract
भारतीय नीतिशास्त्र के इतिहास में शुक्राचार्य का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। आचार्य शुक्र अपने युग के एक महान् ऋषि तथा नीतिज्ञ थे। उनके पर्याय शब्द उशना, काव्य,भार्गव आदि हैं। महाभारत में ‘उशना’ के रूप में शुक्राचार्य की नीतियों का अनेकश:1 उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त भार्गव,काव्य2 आदि शब्द से भी शुक्राचार्य का संकेत किया गया है। शुक्राचार्य द्वारा किए गए ब्रह्म नीति शास्त्र के संक्षिप्त रूप के निर्देश के प्रसंग में ‘महाभारत’ के अंतर्गत इन्हें ‘अमितप्रज्ञ:’3 ‘महायशा:’ आदि उपाधियों से विभूषित किया गया हैं। अन्यान्य प्राचीनग्रंथो में भी शुक्राचार्य की नीति की अत्यंत प्रसंशा की गयी हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्र के प्रारंभ में ऋषि-वंदना में शुक्र-बृहस्पति को नमन (नम: शुक्रबृहस्पतिभ्याम्) स्पष्ट कर देता है कि कौटिल्य के युग तक आचार्य शुक्र ख्यातिलब्ध आचार्य माने जा चुके थे। आचार्य शुक्र के ग्रन्थ शुक्रनीति में दो हजार दो सौ श्लोक मौलिक तथा अन्य विविध श्लोकों को मिलाकर कुल दो हजार चार सौ चवन श्लोक हैं। शुक्रनीति राजनीति का प्रख्यापक ग्रन्थ है। जिसके अध्ययन से तत्कालीन भारतीय समाज, उसके चिंतन तथा प्रकृति पर प्रकाश पड़ता हैं। शुक्रनीति सामाजिक हित तथा सामाजिक सुरक्षा की दिशा को प्रशस्त करने में हमारा मार्गदर्शन करती है।राजनीतिक तथा आर्थिक चिंतन के अतिरिक्त ‘शुक्रनीति’ मानव आचरण के लिए मानदंड भी निहित करती हैं।